पंच दिवसीय दीपोत्सव पर कविता 


मन से मन का  यूँ सुंदर  दीप जले जब, 
जगमग जगमग, जग सारा का सारा हो। 

हर दिल से घृष्णा द्वेष   दोष  मिटे जब, 
घर आंगन में खुशहाली का बंटवारा हो। 

प्रतिद्वंद्विता की झुलसती नफरत  मिटे, 
बहती जग में सदा प्रेम सौहार्द धारा हो। 

ऊँच-नीच जाति-पाति के भेद‌भाव टूटे, 
मन सौरभ सुमन आमंत्रण जो प्यारा हो। 

स्वार्थ भाव की सभी  दीवारें जो तोड़े, 
औरों का भी मन  आलोकित  सारा हो।

बड़े बुजुर्गों को मिले प्रिय साथ-सहारा, 
आशीष-दुआओं से महका घर द्वारा हो। 

 मधुर वचन सदा सबसे ही बोलें जो हम
जीवन मीठी खुशियों सा मीठा सारा हो।

उषा शर्मा ✍️

जामनगर गुजरात


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