संदीप सिंह गहरवार
स्व. अर्जुन सिंह जी, देश व प्रदेश का ऐसा नाम जिनका जिक्र आते ही मन में कई तरह के रूप सामने आने लगते हैं। कभी गरीबों के मसीहा के रुप में तो कभी उद्योगपतियों के रहनुमा के रूप में, तो कभी अफसरों के मार्गदर्शक के रूप में तो कभी एक व्यक्तित्वपरख राजनेता के रूप में। आज सारा देश, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं केन्द्रीय मंत्री रहे स्व. अर्जुन सिंह का जन्म दिन मना रहा है।अर्जुन सिंह का जन्म 5 नवंबर 1930 को एक राजपूत परिवार में हुआ था। वे शिव बहादुर सिंह के बेटे थे, जो एक जागीरदार और चुरहट राजघराने के 26वें राव और कांग्रेस के राजनीतिज्ञ थे। अर्जुन सिंह सही मायने में सियासत के एक महानायक कहे जाते हैं। हम देश के नव निर्माण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू एवं राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के सुझाए उपायों पर अमल करने की बात कहते हैं पर अर्जुन सिंह सचमुच उनके अनुरुप ही आचरण किया करते थे। विंध्य क्षेत्र की रिमही जनता उन्हें सम्मान पूर्वक दाऊ साहब के नाम से ही संबोधित किया करती थी। मेरे ख्याल से लगभग पूरा प्रदेश ही उन्हें इस नाम से संबोधित किया करता था। आम जनता के इस संबोधन का दाऊ साहब पूर ख्याल भी रखते थे। सचमुच वह एक पालक की भूमिका का निर्वाहन भी करते थे। बताते हैं कि उनके प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के पहले तक पूरा विंध्य क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा था। जब उन्होंने प्रदेश की बागडोर सम्हाली तो विंध्य क्षेत्र के साथ पूरे प्रदेश में शिक्षा का अलख जग गया। इतना ही उनके मुख्यमंत्री रहते उन्होंने हर उस आदमी का भला किया है जो उनके पास तक पहुंचा या महज जिसकी जानकारी भी उन तक पहुंची है।
दाऊ साहब की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह किसी जाति या धर्म को विशेष महत्व नहीं देते थे। उनकी नजरों में हर जाति- धर्म का आदमी एक समान था। प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह सिर्फ अपने प्रदेश के लोगों का भला नहीं सोचते थे, उनकी सोच समग्र थी। देश में पहली बार तेन्दूपत्ता के राष्ट्रीयकरण का काम उनकी ही देन है। जेठ की दुपहरी में रोजी-रोटी के लिए जंगलों की खाक छानने वाले बीड़ी मजदूरों की पीड़ा को समझने का काम सिर्फ अर्जुन सिंह ही कर सकते थे। गरीबों के प्रति उनका बेहद स्नेह इस कदर जज्बाती था कि, मुख्यमंत्री का पद संभालते ही उन्होंने प्रदेश के सभी झुग्गीवासियों को, जहां वह रह रहे थे, पट्टे देने का ऐलान कर दिया। वह सही मायने में एक महान युग प्रणेता थे। देश-प्रदेश के हर तबके का ख्याल उनके जेहन में हमेशा रहा करता था। दाऊ साहब की राजनीतिक दक्षता का तो कोई सानी नहीं था। उन्हें इसी कुशलता के कारण राजनीति का चाणक्य कहा जाता था। राजनीतिक मसलों को हल करने की जो कला उनमें थी, देश के चुनिंदा नेताओं में ही मानी जा सकती है। फिर चाहे वह आतंकवाद की आग से झुलसते पंजाब में शांति वहाल कराना हो या पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव के साथ तत्कालीन मतभेदों के चलते घुटने न टेकने का हो। वह हर मामले में अव्वल रहे हैं। उन्होंने एक कुशल प्रशासक के रूप में भी अपनी अमिट छाम छोड़ी है। वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने लापरवाही के आरोप से घिरे एक आईएएस अफसर जो तत्कालीन मुख्य सचिव थे, को निलंबित करने का काम किया था। कहते हैं प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी जी, जो उस समय दाऊ साहब के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे। इसी दौरान उन्होंने रीवा मेडिकल कालेज के कुछ प्रोफेसरों का तबादला तब अविभाजित मप्र में रायपुर कर दिया। कुछ दिन बाद उन्हीं प्रोफेसरों के तबादले कैंसिल भी हो गये। उस समय उप्र के इलाहाबाद जिले से प्रकाशित एक प्रसिद्ध समाचार पाक्षिक पत्रिका में इन तबादलों में लेनदेन की खबर छपी। बताते हैं कि समाचार पत्रिका के बाजार में आते ही बतौर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तिवारी जी का स्तीफा मांग लिया था। इस घटना का जिक्र करने का कारण सिर्फ यह है कि प्रदेश की जनता को एक निष्पक्ष प्रशासन देने के मामले में वह किसी से कोई समझौता नहीं करते थे। कहते हैं कि काम के मामले में वह लापरवाही बर्दास्त नहीं करते थे। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री रहे चरणदास महंत ने मुझसे एक साक्षात्कार में बताया था कि दाऊ साहब समय के बहुत ही पाबंद थे। वह हमेशा निर्धारित समय पर पहुंचना पसंद करते थे। उनकी बैठकों में नेता या अफसर निर्धारित समय से पहले ही अपना स्थान ग्रहण कर लेता था। समय की प्रतिबद्धता मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्व. बाबूलाल गौर ने दाऊ साहब स्व. अर्जुन सिंह से ही सीखी थी। शायद यही कारण था कि उनके कार्यकाल में अफसरशाही कभी हावी नहीं रही। आज दाऊ साहब हमारे बीच नहीं है पर उनकी कर्मठता, कर्तव्य परायणता, देश के लिए कुछ कर गुजरने की लगन हमे हमारे कर्म करने की प्रधानता को मजबूत संबल प्रदान कर रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
दाऊ साहब की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह किसी जाति या धर्म को विशेष महत्व नहीं देते थे। उनकी नजरों में हर जाति- धर्म का आदमी एक समान था। प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह सिर्फ अपने प्रदेश के लोगों का भला नहीं सोचते थे, उनकी सोच समग्र थी। देश में पहली बार तेन्दूपत्ता के राष्ट्रीयकरण का काम उनकी ही देन है। जेठ की दुपहरी में रोजी-रोटी के लिए जंगलों की खाक छानने वाले बीड़ी मजदूरों की पीड़ा को समझने का काम सिर्फ अर्जुन सिंह ही कर सकते थे। गरीबों के प्रति उनका बेहद स्नेह इस कदर जज्बाती था कि, मुख्यमंत्री का पद संभालते ही उन्होंने प्रदेश के सभी झुग्गीवासियों को, जहां वह रह रहे थे, पट्टे देने का ऐलान कर दिया। वह सही मायने में एक महान युग प्रणेता थे। देश-प्रदेश के हर तबके का ख्याल उनके जेहन में हमेशा रहा करता था। दाऊ साहब की राजनीतिक दक्षता का तो कोई सानी नहीं था। उन्हें इसी कुशलता के कारण राजनीति का चाणक्य कहा जाता था। राजनीतिक मसलों को हल करने की जो कला उनमें थी, देश के चुनिंदा नेताओं में ही मानी जा सकती है। फिर चाहे वह आतंकवाद की आग से झुलसते पंजाब में शांति वहाल कराना हो या पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव के साथ तत्कालीन मतभेदों के चलते घुटने न टेकने का हो। वह हर मामले में अव्वल रहे हैं। उन्होंने एक कुशल प्रशासक के रूप में भी अपनी अमिट छाम छोड़ी है। वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने लापरवाही के आरोप से घिरे एक आईएएस अफसर जो तत्कालीन मुख्य सचिव थे, को निलंबित करने का काम किया था। कहते हैं प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी जी, जो उस समय दाऊ साहब के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्रालय का कामकाज देख रहे थे। इसी दौरान उन्होंने रीवा मेडिकल कालेज के कुछ प्रोफेसरों का तबादला तब अविभाजित मप्र में रायपुर कर दिया। कुछ दिन बाद उन्हीं प्रोफेसरों के तबादले कैंसिल भी हो गये। उस समय उप्र के इलाहाबाद जिले से प्रकाशित एक प्रसिद्ध समाचार पाक्षिक पत्रिका में इन तबादलों में लेनदेन की खबर छपी। बताते हैं कि समाचार पत्रिका के बाजार में आते ही बतौर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तिवारी जी का स्तीफा मांग लिया था। इस घटना का जिक्र करने का कारण सिर्फ यह है कि प्रदेश की जनता को एक निष्पक्ष प्रशासन देने के मामले में वह किसी से कोई समझौता नहीं करते थे। कहते हैं कि काम के मामले में वह लापरवाही बर्दास्त नहीं करते थे। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री रहे चरणदास महंत ने मुझसे एक साक्षात्कार में बताया था कि दाऊ साहब समय के बहुत ही पाबंद थे। वह हमेशा निर्धारित समय पर पहुंचना पसंद करते थे। उनकी बैठकों में नेता या अफसर निर्धारित समय से पहले ही अपना स्थान ग्रहण कर लेता था। समय की प्रतिबद्धता मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्व. बाबूलाल गौर ने दाऊ साहब स्व. अर्जुन सिंह से ही सीखी थी। शायद यही कारण था कि उनके कार्यकाल में अफसरशाही कभी हावी नहीं रही। आज दाऊ साहब हमारे बीच नहीं है पर उनकी कर्मठता, कर्तव्य परायणता, देश के लिए कुछ कर गुजरने की लगन हमे हमारे कर्म करने की प्रधानता को मजबूत संबल प्रदान कर रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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