शीर्षक- क्योंकि मैं मजदूर हूँ
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मर्यादा की पगड़ी पहने;
कर्मठ कुछ चिथड़े लपेटे;
पेट भरा हूँ आधा 'हाय'!
पैसे की किल्लत है 'हाय'!
कहता- "मैं मजबूर हूँ";
कहता- "मैं मजदूर हूँ"।
आठ बजे तो काम पर जाता,
आठ बजे तो काम से आता,
आठ-आठ के इस चक्कर में
अपनों से मैं दूर हूँ
क्योंकि मैं मजबूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।
सोने को मिट्टी हूँ खोदता,
सोना खुद मिट्टी में होता,
मिट्टी का तन मिट्टी ढोता,
डाँट खाये मैं मूक हूँ,
क्योंकि मैं मजबूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।
-कीर्ति जायसवाल
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
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