|| प्रति कविता ||
मत लिखो ऐसी कवितायें
की तिलमिला उठे मन
शर्मिंदा हो हमारा सुख
भय हो बिटिया को देख के ..
जो काम पुलिस का है
नेता का है
समाज सेवक का है तुम मत करो
तुम क्यो आधी रोटी पर दाल लें रहे
क्यों ठीकरा फोड़ रहे हो ..
तूम कवि हो कविता लिखो
लोगो का मन बहलाओ
प्रेम लिखो ,विरह लिखो
सुख और दुख लिखो
योद्धा नही की आग से खेलो ..
समझ जाओ अभी भी
कवि हो ,कवि की तरह रहो
शब्दों से खेलो
मानसिक विलासिता का सुख लो
खुड़ पेंच मत मारो
जासूस मत बनो
वरना तुम जानते ही हो
छीन ली जाएगी तुम्हारी कविता
और हम तुम्हारी जयंती ,पुण्यतिथि मनाते
रहेगें..... सरकारी खर्चे पर ...
|| .मधु सक्सेना ||
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