हम फादर जाति के लोग!


साँच कहै ता


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जयराम शुक्ल
हम साल में दो बार मातृशक्ति का पर्व नवदुर्गा मनाते हैं। अबोध कुँवारी कन्याओं को साक्षात देवी का अवतार मानकर पूजते हैं।  साल में एक दिन जब मदर्स डे मनाते हैं तब सोशल मीडिया में मातृभक्ति का ऐसा उफान आता है जैसे कि विह्रलता के आंसू सारी कायनात को भिगो दे। माँ की महिमा का वर्णन ऋग्वेद काल से ही चला आ रहा है। जननी जन्म भूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी। धरती माता जहां हम जन्में हैं वह स्वर्ग से भी महान है। जो हमें जन्म देती है वह तो मां है ही जो पालती और पोषती है, मोक्ष देती है वे भी माताएं हैं यथा मातृभूमि, गोमाता, गंगा मैय्या। 


हमारे देश में सभी ऐश्वर्य वैभव माँ के साथ जुड़े हैं। ज्ञान की देवी माँ सरस्वती, धन की देवी माँ लक्ष्मी, शक्ति की देवी माँ दुर्गा। सनातन से यह भी सुनते आ रहे हैं कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहीं देवता रमते हैं। यानी की
समूचा देश, हमारा परिवेश मातामयी है, ममतामयी है। माता हमारी  प्रथम गुरू है। रिश्तों पर देखें तो सबसे ज्यादा साहित्य माँ पर ही लिखा गया, गीत,कविताएं, कहानियां, नाटक। सबसे ज्यादा फिल्में माँ पर आधारित ही हिट
हुईं। माँ का विकास नवजात बालिका शिशु से होता है, जिसे कोई माँ ही अपनी कोख में 9 महीने रखकर जन्मती है। यह बालिका नवजात शिशु-पहले बच्ची, फिर तरुणी, युवती, फिर माँ-फिर दादी बनती है। यही माँ-बहन-भतीजी, पत्नी, बुआ,मौसी, दादी-नानी और भी कई रिश्तों को ढोती हुई स्वर्ग सिधार जाती है।


वर्ष में दो पखवाड़े हम मातृशक्ति के नाम मनाते हैं..अहा... विश्व में हम कितने बड़े मातृपूजक हैं...हैं न।
अब आइए यथार्थ में ...इस दुनिया में यदि सबसे ज्यादा किसी के नाम से गाली झड़ती है तो वह हमारे इसी महादेश भारत में.... माँ के नाम से। हर क्षण-हर सेकण्ड किसी न किसी के मुंह से माँ को इसके बाद बहन को गाली निकलती है। माँ के गाली देने के लिए हमने अंग्रेजी से 'मादरÓ शब्द पूरी सौजन्यता के साथ ले लिया। माँ की गाली भारत को छोड़कर अन्य किसी देश में नहीं दी जाती। जबकि हम भारत को भी माता ही कहते हैं। हमारा भोपाल तो इस मामले में इतना आगे है कि माँ की गाली जुबानों पर तकियाकलाम की भांति जड़ी है।


 क्या कभीआपने गौर किया है कि गालियां पुरूषवाचक क्यों नहीं होतीं । पिता-भाई, फूफा, बहनोई, मौसा किसी के नाम से गाली नही, सिवाय माँ-बहन को एक कर देने
के। मदर्स डे मनाते समय क्या पलभर के लिए यह ख्याल आया कि हमारी जुबानों से माँ-बहन की गालियां क्यों झड़ती हैं...। कितना बड़ा ढोंग ...पाखण्ड माँ के नाम पर। यही माँ जब भ्रूण के रूप में कोख में पल रही होती है तो
उसकी हत्या की सुपारी देने वाले कौन हैं। हम ही फादरजाति के लोग....जो माँ की वंदना करते नही अघाते। 
होश संभालते ही सबसे ज्यादा नसीहतें, झिड़कियां किसे...? इन्हीं माँ-जाति की बेटियों, बहनों के लिए। आगे बढ़े तो यही हवस की भी शिकार होती है। कोई एक निर्भया नहीं... गांव-गांव, मोहल्ले-मोहल्ले फादर के दरिन्दों से घिरी हुयी निर्भयाएं, प्रियंकाएं। गाजर-मूली-बैंगन की भांति कटी-फटी-भुनी लाशें, कुएं नही नाले उगलते हैं।
इसी महादेश में जिसे भारत माता के नाम से जाना और पूजा जाता है।


 यही वह देश है जहां माँ-जाति के जिस्म की तिजारत होती है। खरीदने, बेचने वाले हमी 'फादर' जाति के लोग हैं। माँ बूढ़ी हुई तो घर से बेदखल करने वाले हमी हैं। ... कितना पाखण्ड है हमारे आचरण में। कैसा दोहरापन है। हम कितने मिथ्याचारी हैं युगों-युगों से माँ को बेडिय़ां पहनाकर उसे आभूषण के रूप में महिमा मण्डित करने वाले हमीं हैं। शरीर के हर अंग को छेद दो। गहने के नाम पर धातुओं की बेड़ी पहना दो। बस महिमा मण्डित करते जाओ। मदर्स डेमनाते जाओ...सब चलेगा। लोकतंत्र के सदनों में स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व-पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी कम है फिर भी इश्तहारों में हम... मातृशक्ति की वंदना करते नहीं थकते...। बड़ी अकथ कहानी है माँ की । इन्हीं कहानियों के शब्दजाल में मकड़े के शिकार की तरह उलझी है मादर जाति... फिर भी हर मैय्यन की जय, वंदे मातरम्, भारत माता की जय। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। 


माँ -जाति तो साक्षात् नरक में है भाई। ...हां ...कुछ याद आया  अपने आसपड़ोस की खुसबू, अनामिका, रोशनी और भी कई कई। इनकी जिन्दगियों को यदि फादर-जाति ने रौरव नरक में न भेजा होता तो वह भी आज बेटे-बहुओं,नाती-पोतों से भरे पूरे परिवार में खिलखिला रहीं होतीं ।
       फिर भी बोलो भारतमाता की जय!


संपर्कः8225812813


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