संध्या मिश्रा की कविता-मैं और तुम

मैं नहीं तुम 


मै अल्हड़ बहती सी सरिता
पर तुमने बाँध बनाए क्यों
मै अर्द्ध निशा का चंचल तारा
तुम मार्गदर्श बन आये क्यों
मै नीलगगन की गौरैया 
तुम जाल बिछा कर आये क्यों
मै वीत राग की स्वछंद स्वरा
तुम बहर बीच में लाये क्यों
मै नए गीत का नवल छंद
तुम शब्द खींच कर लाये क्यों
मै स्वप्न लोक की परिकथा
तुम स्वप्न तोड़ते आये क्यों
मै जोगन नहीं कापाला संग
तुम शमशान मुझे ले आये क्यों
मै जीवन की थी भरी उमंग
तुम काल मेरा बन आये क्यों।



संध्या मिश्रा, भोपाल


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