कोरोना: लॉक डाऊन कितना सही या कितना गलत


श्रीमती प्रमिला कुमार 
पूर्व सदस्य म.प्र. राज्य उपभोक्ता आयोग

आजकल सोशल मीडिया पर इस बात की बहस चल रही है की लॉक डाऊन का निर्णय समय रहते नहीं लिया गया। इसके पक्ष और विपक्ष में बहस हदें पार करके हो रही है, कहीं कहीं राजनीतिक विद्वेष लिए हुए। इस सब बातो को सुनने, पढऩे से मन में विचार आता है की हम भारतीयों की मानसिकता बहुत ज्यादा मजबूत है या हम अपना डर छुपाने शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर छुपाने की कोशिश में किसी भी बहस को राजनीतिक और धार्मिक रूप देकर बहादुर साबित करने का नाटक करते हैं?  अब मुद्दे की बात....अगर मान भी लिया जाए की लॉक डाऊन का निर्णय समय पर लिया गया बेहतरीन निर्णय था लेकिन क्या ये योजनाबद्ध तरीके से लिया गया था ? क्या इसको लागू करने के पहले इसके नकारात्मक पहलुओं पर विचार करके उसकी नकारात्मकता के विपरीत प्रभाव का असर लोगों पर ना पड़े इसका इंतजाम किया गया? क्या लॉक डाऊन के दौरान लोगों की मूलभूत जरूरतों को सुलभ कराने की व्यवस्था की गई? क्या इस महामारी से बचाव के साधन और दवाईंयों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई ? और सबसे अहम सवाल ....लॉक डाऊन के बाद की स्थिति से सामना कारने की क्या योजना और तैय्यरी की गई है? 
लॉक डाऊन के बाद की स्थिति इससे भी भयानक होने वाली है। निम्न आय वर्ग के सामने रोजगार की समस्या महामारी से भी भयावह होगी। क्योंकि इस महामारी के चलते काफ़ी बड़ी संख्या मे संस्थान बन्द होने की कगार पर हैं इस स्तिथि मे जहां उनका ही अस्तित्व खतरे मे हैं वो दूसरों का अस्तित्व बचाने की स्तिथि मे नही ही हो सकते। इसी प्रकार माध्यम वर्ग जिसपर दैनिक मजदूर वर्ग आश्रित है आर्थिक मंदी के चलते अपनी जरूरतों को सीमित करेगा जिसका सीधा सीधा असर मजदूर वर्ग पर पड़ेगा। इस स्तिथि के कारण आर्थिक और सामाजिक अपराधो के बढऩे की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता।
अगर ऐसी स्तिथि बनती है तो सबसे ज्यादा नुकसान माध्यम वर्ग का होगा  क्योकि उच्च वर्ग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्षम होने के साथ ही अपने सुरक्षा घेरों मे सुरक्षित है जहां पहुंचना निम्न वर्ग के लिए असंभव नही तो अति कठिन जरूर है। लेकिन मध्यम वर्ग तक आसानी से पहुंचा जा सकता है जिस कारण निम्न और मध्यम वर्ग के बीच एक आर्थिक युध्द की स्थिति बन सकती है जो समाज और देश के लिए घातक सिद्ध होगा। ये समय सारे राजनीतिक और व्यक्तिगत विद्वेष को भूलकर, एक दूसरे की कमियां निकालने के बजाय सकारात्मक सोच के साथ धैर्यपूर्वक अपनी सामर्थ्य अनुसार समाज और देशहित मे कार्य करने का है। अगर हम अब भी नही सम्हले तो  अकल्पनीय नुकसान उठाने के लिए हमें तैय्यार रहना चाहिए। 


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