Skip to main content

साक्षात्कार : साहित्य हमेशा समाज को दिशा दिखाता रहा है : रश्मि दुबे


भोपाल । देश की जानीमानी साहित्यकार एवं शिक्षिका और चित्रकार रश्मि दुबे का मानना है कि वर्तमान परिपेक्ष में  कलाकार,  चित्रकार या लेखक कोरोना जैसी महामारी को एक चुनौती के रूप में देखते हैं क्योंकि  ऐसे समय में लेखकों या कलाकारों  की भूमिका बहुत विस्तृत हो गई है l रश्मि दुबे का कहना है कि साहित्यकार राष्ट्र एवं समाजोपयोगी विषयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज तक पहुंचाने का कार्य करते हैं जो  समाज में कई बार मील का पत्थर भी साबित होता है । साहित्यकार अपनी भूमिका को लेकर काफी तटस्थ हैं। वह अपनी  लेखनी द्वारा कई तरह के देश और समाज में बदलाव हेतु कार्य करते हैं l उन्होंने विभिन्न पहलुओं पर खुलकर बातचीत की । पेश है रश्मि से बातचीत के खास अंश.....।


सवाल : कलाकार, चित्रकार या लेखक कोरोना जैसी महामारी को किस तरह देखती हैं। 


रश्मि : वर्तमान परिपेक्ष में  कलाकार, चित्रकार हो या लेखक,  मुझे लगता है कि कोरोना जैसी महामारी को एक चुनौती के रूप में देखते हैं। क्योंकि डॉक्टर या प्रशासन ही नहीं ऐसे समय में लेखकों या कलाकारों  की भूमिका भी बहुत विस्तृत हो गई है l 


सवाल : कोरोनकाल में साहित्य लेखन में किस तरह का बदलाव आया है।


रश्मि : साहित्यकार राष्ट्र एवं समाजोपयोगी विषयों को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज तक पहुंचाने का कार्य करते हैं, जो समाज में कई बार मील का पत्थर भी साबित होती है।  साहित्यकार अपनी भूमिका को लेकर काफी तटस्थ हैं । खासकर साहित्यकार अपनी लेखनी द्वारा देश एवं समाज में कई तरह के  बदलाव हेतु कार्य करते हैं l


सवाल : लेखन या साहित्य के प्रति आपका लगाव कैसे हुआ।


रश्मि : लेखन के प्रति रुझान तो मेरा बचपन से ही था, पर पारिवारिक माहौल न मिलने के कारण मुझे कई बार छुपा-छुपा कर अपनी रचनाओं को लिखना पड़ता था। मैंने चोरी-छिपे मुंशी प्रेमचंद और महादेवी वर्मा को भी बहुत पढ़ा। मैं उन दोनों मूर्धन्य साहित्यकारों से भी बहुत प्रभावित हुई । इसके साथ ही समय अनुसार अपनी भावनाओं को कभी कविताओं के रूप में तो कभी कहानी का रूप देकर लिखने लगी थी। 


सवाल :  आपदा के समय साहित्यकारों की भूमिका को किस प्रकार देखती हैं।


रश्मि :  मुझे लगता है आज तक इस कठिन दौर में साहित्यकारों की अहम भूमिका रही है।  वह अपनी रचनाओं और कहानियों के द्वारा, लेखों के द्वारा समाज को एक नई दिशा देते रहे हैं ताकि किसी तरह से हमारा समाज इस महामारी से बचता रहे। लेखकों एवं साहित्यकारों को अपनी लेखनी से  इस महामारी के लक्षण क्या है इस पर जोर देते हुए उससे संबंधित रचनाओं को अपने विषय में विशेष रूप से स्थान देना चाहिए।


सवाल : दो दशक पहले और वर्तमान साहित्य लेखन को आप किस तरह देखती हैं। 


रश्मि : दो दशक पहले का जो साहित्य था  या जो साहित्यकार रहे वह काल्पनिक साहित्य रचना लिखा करते थे । अब उस समय में और वर्तमान समय में जमीन आसमान का अंतर है। जैसे आज जो ज्वलंत मुद्दे हैं वह पहले कभी नहीं हुआ करते थे। वर्तमान समय में साहित्यकार वर्तमान विषय अनुसार अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर रहे हैं l


सवाल : कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है। पर आपको क्या  लगता है कि वर्तमान साहित्य को खुद आईने की जरूरत है।


रश्मि : आज के दौर में साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ ही साथ एक सशक्त अंग भी होता है जो कि मनुष्य को मनुष्य बनाने एवं समाज में विशिष्ट योगदान प्रदान करता है। साहित्य का अर्थ होता है सबका हित । साहित्य और समाज एक तरह से एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । एक दूसरे के बिना दोनों के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  साहित्य वैसे तो उसी रचना को कहा जा सकता है जिसमें सच्चाई और अपनी अनुभूति या भावनाएं प्रकट की गई हो। निष्पक्ष होकर  जिस साहित्य की भाषा प्राण परिमार्जित, सुंदर एवं पाठकों के दिलों दिमाग पर असर डालने का गुण रखती हो, साथ ही साथ वह सभी के जीवन को लगे कि जैसे उनके जीवन की सच्चाई का परिदर्पण भी हो। यही साहित्य की सार्थकता है।


सवाल : साहित्य लेखन देश-काल, परिस्थिति के हिसाब से लेखन या कला बदलती रही है। पर क्या इस समय लेखन अतिवादी मानसिकता का शिकार नहीं हो गया।


रश्मि : हां वैसे तो सही बात है,  हमेशा से ही देश काल और परिस्थिति के अनुसार लेखन एवं कला में बदलाव आता रहा है और आता रहेगा । अभी जो पुराने मुद्दे हैं वह तो इन मुद्दों में शामिल नहीं हो सकते तो इसलिए उसका लेखन का प्रारूप तो बदलना ही पड़ेगा । जहां तक सवाल अतिवादी की मानसिकता का है तो साहित्यकारों को कुछ न कुछ तो नया करते ही रहना होगा  ताकि कहीं वह अतिवादी मानसिकता का शिकार न हो सके। परंतु इसके साथ ही कुछ सामाजिक मुद्दे हैं, जिन्हें विषय एवं समय अनुसार तो उठाना ही होगा।


सवाल : आपको नहीं लगता कि जो साहित्य कभी समाज को दिशा देता था, आज वह खुद दिशाहीन हो गया है। और उस भूमिका से परे हो गया है।


रश्मि : नहीं मुझे बिल्कुल भी ऐसा नहीं प्रतीत होता कि जो साहित्य कभी समाज को दिशा दिखाता था वह दिशाहीन हो गया है। साहित्य आदिकाल से ही लोगों का पथ प्रदर्शक रहा है और रहेगा। हां यह बात अलग है कि कुछ नवांकुर साहित्यकार जब जन्म लेते हैं या साहित्य के क्षेत्र में कदम रखते हैं, उस समय उनकी लेखनी इतनी सशक्त नहीं होती जितनी कि होना चाहिए या वह समयानुसार, विषय अनुसार या समाज की विशेष मुद्दों पर अपने विचारों को सशक्त रूप से रख सकें।


सवाल : नवोदित साहित्यकारों या चित्रकारों को कोरोनकाल में किस तरह का नुकसान हुआ है। उस नुकसान की भरपाई किस तरह की जा सकती है।


रश्मि : निश्चय ही नवोदित साहित्यकारों एवं चित्रकारों का तो सबसे ज्यादा  नुकसान हुआ है। इस करोनाकाल में विशेष तौर से क्योंकि जो प्रतिष्ठित साहित्यकार य चित्रकार है उनका तो  नहीं क्योंकि वो तो आप अपने आप में जमे हुए हैं परंतु नवांकुर (नवोदित)  साहित्यकारों को जहां एक तो स्वयं को स्थापित करने की होड़ है वहीं दूसरी ओर अपनी रोजी-रोटी और अपना नाम बनाने का भी उनके ऊपर हर समय दबाव रहता है। आर्थिक रूप से भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस दौर में तो उनके लिए ऑनलाइन कवि सम्मेलन या इसी तरह के अन्य कार्यक्रमों का आगाज करते हुए उन्हें मंच प्रदान किया जाए और जहां तक चित्रकारों का सवाल है तो उन्हें भी ऑनलाइन एग्जीबिशन प्रदर्शनी के माध्यम से स्थापित करने में योगदान दिया जा सकता है।


सवाल : आपको लगता है कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में साहित्य की भूमिका एकदम रिक्त सी है।


रश्मि : बिल्कुल ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान परिस्थितियों में साहित्य की भूमिका  शून्य सी है। क्योंकि हमेशा से ही साहित्य ने अपना दायित्व निभाया है और समाज के प्रति हो या चाहे वह राष्ट्र के प्रति हो।  हां भाषा शैली में जरूर अंतर आया है और कहीं ना कहीं यह भी हुआ है कि पहले जिस तरीके से रचनाओं या कहानियों का, कथानकाओं का अध्ययन किया जाता था आजकल समयाभाव होने से नहीं पढ़ा जाता। उसका कारण है तकनीकी बदलाव ।इंटरनेट की दुनिया के आने से यह परिवर्तन दिख रहा है। बल्कि मैं तो यह कहूंगी कि साहित्यकारों को मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से और भी कई प्लेटफार्म मिलने लगे हैं ताकि वह अपनी रचनाओं को ही नहीं अपनी कहानियों को भी अधिक से अधिक संख्या में पाठकों तक पहुंचा सकें।



Comments

Popular posts from this blog

हेयर ट्रीटमेंट को लेकर सजग हो रहे लोग : राज श्रीवास

सुनीता ब्यूटी एकेडमी द्वारा दो दिवसीय हेयर मास्टर क्लॉस का आयोजन भोपाल। सौंदर्य के क्षेत्र में कार्यरत राजधानी की जानीमानी संस्था सुनीता ब्यूटी एकेडमी भोपाल द्वारा आनंद नगर में प्रारम्भ किए गए अपने नवीन आउटलेट में 2 दिन का हेयर आर्टिस्ट डिप्लोमा क्लॉस आयोजित किया गया। उक्त जानकारी देते हुए सुनीता ब्यूटी एकेडमी भोपाल की संस्थापक सुनीता सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ के हेयर गुरु के नाम से मशहूर तथा  जानेमाने हेयर एक्सपर्ट राज श्रीवास के मार्गदर्शन में दो दिवसीय हेयर मास्टर क्लॉस और हेयर आर्टिस्ट डिप्लोमा क्लॉस का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय सत्र में पहले दिन इंटरनेशनल  हेयर कट टेक्निक, एडवांस ब्लो ड्राई स्टाइलिंग, इंटरनेशनल  हेयर कलर टेक्निक, ऑफ्टर कलर स्टाइलिंग, कलर केयर एंड टेक्निक की जानकारी दी जी। वहीं सत्र के दूसरे दिन हेयर नैनो प्लास्टिया ट्रीटमेंट, मेगा साइन ट्रीटमेंट,  इको प्लास्टिया ट्रीटमेंट, हेयर बोटोक्स ट्रीटमेंट, हेयर कॉलेजेन ट्रीटमेंट,  फ्रिज़ ऑट हेयर ट्रीटमेंट की जानकारी सभी ब्यूटी आर्टिस्टों की दी गई। ब्यूटी एक्सपर्ट सुनीता सिंह और गायत्री मालवीय द्...

जेल के अन्दर का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर जेल की सुरक्षा के साथ किया खिलवाड़ : मिर्ची बाबा

मिर्ची बाबा ने केंद्रीय जेल अधीक्षक के कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल कहा, कैदियों के पेट काटकर उनकी स्वंत्रता और गरिमा तथा जेल की गोपनीयता कर रहे भंग भोपाल। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के महामंडलेश्वर महामंडलेश्वर स्वामी वैराग्यानंद गिरी महाराज ने केंद्रीय जेल भोपाल के अधीक्षक पर कैदियों के पेट काटकर उनकी स्वंत्रता और गरिमा तथा जेल की गोपनीयता कर रहे भंग करने का आरोप लगाया है। मिर्ची बाबा ने कहा कि मुझे विशेष सूत्रों के माध्यम से पता चला है कि जेल में बंद कैदियों के पेट का हक काट कर जेल अधीक्षक ने कथावाचक  अनिरुद्धाचार्य की कथा का आयोजन केंद्रीय जेल में किया गया एवं कथा के दौरान संबंधित कैदियों से समव्यावहार व बातचीत का वार्तालाप कथावाचक के यूट्यूब चैनल पर भी चलाया जा रहा है । मिर्ची बाबा ने कहा कि केन्द्रीय जेल भोपाल में वर्ष 2023 में कथावाचक हरि ठाकुर चंडीगढ़ एवं वर्ष 2024 में कथावाचक आचार्य अनिरुद्धाचार्य की बड़े स्तर पर दो भागवत कथाओं का आयोजन किया गया था। सवाल यह उठता है कि आयोजन में खर्च की गई राशि और उसकी अनुमति क्या प्रशासन से ली गई थी।  उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन के...

भूमि पूजन करने आईं मंत्री, मधुमक्खियों ने लगवा दी दौड़

जान बचाकर दौड़ीं, काम नहीं आई सरकारी सुरक्षा व्यवस्था  मंच से शुरू हुआ मधुमक्खियों का कहर, मच गई भगदड़ सतना (मध्य प्रदेश)।  नेता और मंत्री जहां जाते हैं, वहां सुरक्षा का इतना कड़ा घेरा होता है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। लेकिन सतना में मधुमक्खियों ने इस सुरक्षा का ऐसा मजाक उड़ाया कि मंत्री और अधिकारी तक जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गए! शुक्रवार को सतना के सिविल लाइन इलाके में बन रहे शहीद स्मृति पार्क का भूमि पूजन समारोह था। राज्यमंत्री प्रतिमा बागरी जैसे ही पूजा की तैयारी करने लगीं, अचानक सैकड़ों मधुमक्खियों का झुंड वहां आ धमका। मधुमक्खियों ने बिना किसी चेतावनी के ऐसा हमला किया कि पूरा कार्यक्रम स्थल जंग का मैदान बन गया। अफसर, नेता, सुरक्षा गार्ड—जो जहां था, वही से अपनी जान बचाने भागा! मंत्री प्रतिमा बागरी भी दौड़ती नजर आईं, उनके साथ अधिकारियों की भी हालत खराब हो गई। सुरक्षा बेबस, मंत्री को भी भागना पड़ा मंत्री और अधिकारी अक्सर वीआईपी सुरक्षा घेरे में चलते हैं, लेकिन यहां मधुमक्खियों ने सारी व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया। गार्ड, पुलिसकर्मी भी बचने के लिए इधर-उधर भागते दिखे। ...