भोपाल। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के नवीन श्रृंखला 'सप्ताह का प्रादर्श' के अंतर्गत आज नवंबर माह के तृतीय सप्ताह के प्रादर्श के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य के झारा ग्रामीण समुदाय से संकलित टिकरा गुसाई, देवी की डोकरा प्रतिमा, जिसका ऊँचाई– 66 सेमी, चौड़ाई-33 सेमी है। इसे संग्रहालय द्वारा सन, 1998 में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ क्षेत्र के झारा ग्रामीण समुदाय से संकलित किया गया है। इस प्रादर्श को इस सप्ताह दर्शकों के मध्य प्रदर्शित किया गया। इस सम्बन्ध में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि ‘सप्ताह के प्रादर्श’ के अंतर्गत संग्रहालय द्वारा पूरे भारत भर से किए गए अपने संकलन को दर्शाने के लिए अपने संकलन की अति उत्कृष्ट कृतियां प्रस्तुत कर रहा है जिन्हें एक विशिष्ट समुदाय या क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास में योगदान के संदर्भ में अद्वितीय माना जाता है । टिकरा गुसाई छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आदिवासी संस्कृति और डोकरा कला के बीच अटूट संबंध का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। टिकरा गुसाई देवी की इस प्रतिमा को एक झारा कलाकार द्वारा ढलाई की देशज विधि से खूबसूरती से तैयार किया गया है। झारा समुदाय रायगढ़ का एक स्थानीय धातु शिल्पी समुदाय है, जो अपनी डोकरा कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
इस प्रादर्श के बारे में डॉ सुदीपा रॉय ने बताया कि, लॉस्ट वैक्स तकनीक से ढाला गया यह प्रादर्श झारा समुदाय के लोग , स्थानीय आदिवासी समुदायों जैसे मुरिया, गोंड, बाइसन-हॉर्न मारिया, भतरा आदि के लिए देवी देवताओं की विभिन्न प्रतिमाओं की ढलाई करते हैं। प्रस्तुत प्रतिमा को एक अलंकृत सिंहासन पर बैठा हुआ दिखाया गया है, जिसमें सबसे ऊपर एक झंडा लगा है। पूरे सिंहासन को गुसाई देवी की अन्य बीस बहनों की छोटी डोकरा आकृतियों से सजाया गया है। देवी को गाँव के बाहर एक स्थान टिकरा में रख कर पूरे गाँव और समुदाय की समृद्धि के लिए उपासना की जाती है। झारा लोग सूर्योदय से पहले देवी प्रतिमा की पूजा करते हैं। वर्ष में एक या दो बार टिकरा गुसाई देवी को प्रसन्न करने के लिए बकरे या मुर्गे की बलि दी जाती है।
दर्शक इस का अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट (https://igrms.com/wordpress/?page_id=1531) तथा फेसबुक (https://www.facebook.com/onlineIGRMS) पर के अतिरिक्त इंस्टाग्राम एवं ट्विटर के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं।
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