भोपाल । इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा अपनी ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला के तेइसवां सोपान के तहत आज ओडिशा की गदबा जनजाति का पारंपरिक आवास संकुल से सम्बंधित विस्तृत जानकारी तथा छायाचित्रों एवं वीडियों को ऑनलाईन प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि संग्रहालय के जनजातीय आवास मुक्ताकाश प्रदर्शनी में स्थित ओडिशा की गदबा जनजाति का पारंपरिक आवास संकुल आदिवासी और ग्रामीण समाजों की पारंपरिक आजीविका एवं आवास प्रतिमानों को दर्शाती है। गदबा ओडिशा राज्य के दक्षिणी जिले कोरापुट के पर्वतों पर का निवासरत है । साथ ही वे सीमा से लगते हुए आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में भी पाये जाते है । यह पर्वतीय क्षेत्र समुद्री सतह से 1000 फीट से 3000 फीट के ऊंचाई पर है । इनके गांव एक या दो मोहल्लों से मिलकर बने होते है, साथ ही इनके चारागाह चारों ओर जंगलों से घिरे रहते है । सभा हेतु ‘सदर’ और ग्राम देवता ‘हुंडी’ गांवों मे दो प्रमुख स्थान होते है । गदबा गांवों में तीन भिन्न प्रकार के आवास प्रकार पाये जाते है । प्रथम और सर्वाधिक पारंपरिक आवास प्रकार, जिसकी विशेषता उसका वृत्ताकार आकार एवं शंक्वाकार छप्पर होती है, ‘चेंडिडियन’ के नाम से जाना जाता है । द्वितीय आवास प्रकार जो कि चौकोर आकार तथा जिसके चारों ओर छप्पर से बने होते है, को ‘मोरडियन’ कहा जाता है । इस आवास प्रकार में एक दूसरे से लगे हुए दो से तीन कक्ष होते हैं । तीसरे प्रकार के आवास की छप्पर केवल दो ओर से ही होती है तथा इनमें दो ही कमरे होते है, जो की गौशाला से युक्त अथवा गौशाला रहित हो सकते है , इसे ‘डेंड्लडियन’ के नाम से जाना जाता है ।
इस सम्बन्ध में डॉ पी शंकर राव (सहायक कीपर ने आगे बताया कि गदबा ओडिशा के उन आदिवासी समुदायों में से एक हैं, जिन्हें मुंडारी या कोलरियन भाषा समूह में वर्गीकृत किया गया है। मिशेल के अनुसार गदबा शब्द का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो अपने कंधो पर बोझा ढोने का कार्य करता है । गदबा लोगों को पहाड़ी क्षेत्रों मे पालकी वाहक के रूप में भी जाना जाता है । ऐसा कहा जाता है कि इनके पूर्वज गोदावरी नदी क्षेत्र से नंदपुर में आकार बस गए, जो कि जेपोर के राजा की पूर्व राजधानी थी । गदबाओं की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है इसके साथ ही वे लघु वनोपजों के संग्रह, शिकार, मछली पकड़ने और मजदूरी संबंधी कार्य भी करते है। महिलाएं कपड़े की लंबी पट्टी पहनती हैं, जिसे आमतौर पर ‘केरांग’ (केरांग के रेशों से तैयार) के रूप में जाना जाता है, जो कमर से बंधी होती है और इसी कपड़े का एक भाग शरीर के ऊपरी हिस्से तक पहना जाता है। बंदापामा परब, दसरा परब, पूशा परब और चैता परब इनके महत्वपूर्ण त्यौहार हैं । गदबा लोग इन त्योहारों को सावधानी पूर्वक, लगन से, भक्ति और भय के साथ मनाते है। गदबा अपने संगीत, नृत्य और पारंपरिक भोजन के शौकीन है । ये ‘ढेम्सा’ नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं जो महिलाओं द्वारा अपनी प्रसिद्ध ‘केरांग’ साड़ी पहन कर किया जाता है, इस दौरान पुरुष संगीत वाद्ययंत्र बजाते हैं । इनके संगीत वाद्ययंत्रों में बड़े ड्रम, ताल मुडीबाजा, मदाल, बांसुरी, तमक और माहुरी शामिल हैं । साल भर मनाए जाने वाले गीतों, नृत्य, संगीत, रीति-रिवाजों और त्योहारों की समृद्ध लोक परंपराओं के माध्यम से प्रतिबिंबित गदबाओ का धार्मिक जीवन उनके अस्तित्व के लिए रंगीन आयाम जोड़ता है।
दर्शक इसका अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट (https://igrms.com/wordpress/?page_id=1566) एवं फेसबुक (https://www.facebook.com/NationalMuseumMankind) के अतिरिक्त यूट्यूब लिंक ( https://youtu.be/stkb9IAqZxE)पर ऑनलाइन के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं।
Comments