पतंग के साथ उमंग से मनायें सक्रान्ति और समझें सूर्य का साइंस : सारिका घारू



दिन में दिखने वाला तारा ही देता है जीवन,सारिका ने किया सूर्य से संसार कायर्क्रम

भोपाल। पृथ्वी से दिन में दिखने वाला तारे सूर्य को पूरे देश में 14 और 15 जनवरी को अलग-अलग नामों के पर्व में पूजा जा रहा है। देश के पश्चिम एवं मध्यभाग में मकर सक्रान्ति तो दक्षिण में पोंगल तो पूर्व में बिहु नाम के पर्व में पृथ्वी पर जीवन देने वाले सूरज की आराधना की जा रही है। 

नेशनल अवॉर्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने सूर्य से संसार नामक कायर्क्रम में सूर्य का वैज्ञानिक महत्व बताया।सारिका ने बताया कि सूर्य एक तारा है जिसका प्रभाव केवल सौरमंडल के आठवे ग्रह नेप्च्यून तक ही नहीं बल्कि इसके बहुत आगे तक फैला हुआ है। सूर्य की तीव्र ऊर्जा और गर्मी के बिना पृथ्वी पर जीवन नहीं होता।सारिका ने बताया कि सूर्य हाइडोजन एवं हीलियम गैस का बना हुआ है। इसकी आयु लगभग साढ़े चार अरब वर्ष है। अगर सूर्य कोई खोखली गेंद होता तो उसे भरने में लगभग 13 लाख पृथ्वी की अवश्यकता होती। हमारी पृथ्वी इससे लगभग 15 करोड़ किमी दूर स्थित है। सूर्य का सबसे गर्म हिस्सा इसका कोर है जहां तापमान 150 करोड़ डिग्री सेल्सियस से उपर है। नासा द्वारा 24 घंटे सूर्य के वातावरण से इसकी सतह एवं अंदर के हिस्से का अध्ययन की किया जा रहा है। इसके लिये अंतरिक्षयान सोलर प्रोब, पार्कर, सोलर आबिर्टर एवं अन्य यान शामिल हैं।

सारिका ने बताया कि मान्यता है कि मकर सक्रान्ति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है लेकिन वास्तव में अब ऐसा नहीं होता है। हजारों वर्ष पहले सूर्य मकर सक्रान्ति के दिन सूर्य उत्तरायण हुआ करता था। इसलिये यह बात अब तक प्रचलित है। वैज्ञानिक रूप से सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती पृथ्वी के झुकाव के कारण पृथ्वी से देखने पर 21 दिसम्बर के दिन सूर्य मकर रेखा पर था। उस दिन उत्तरी गोलार्द्ध में रात सबसे लम्बी थी। 22 दिसम्बर से दिन की अवधि बढ़ने लगी है और तब से ही सूर्य उत्तरायण हो चुका है। तो पतंग के साथ उमंग से मनायें सक्रान्ति और समझें सूर्य का साइंस।




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