प्रदेश का ‘‘सर्वोच्च कार्यालय‘‘ हुआ ‘‘बीमार‘‘



- तीन साल में इलाज के नाम पर कर्मचारियों ने निकाले 30 करोड़ 
- विधानसभा में उठा मामला, जवाब देने से कतरा रहा जीएडी 

संदीप सिंह गहरवार
भोपाल । मध्यप्रदेश का राज्य, मंत्रालय इन दिनों बीमार है । बीमारी भी ऐसी कि महत तीन साल में ही सरकारी खजाने से 30 करोड़ ठिकाने लगा दिये, यह राशि इलाज के नाम पर बंदरवाट की गई है । मामले की भनक लगते ही जब छिन्दलवाड़ा जिले की चौरई विधानसभा के विधायक चैधरी सुजीत मेर सिंह ने इसे विधानसभा में उठाया तो मध्य प्रदेश का सामान्य प्रशासन विभाग जानकारी देने में कतरा रहा है । इस संबंध में सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार 1 जनवरी 2020 से 31 अक्टूदबर 2022 तक लगभग 29 करोड 46 लाख 24 हजार 226 रूपये का मेडिकल बिल मंत्रालय में पदस्थ कर्मचारियों ने आहरित किये है । सूत्र बताते है कि मंत्रालय में ऐसे कर्मचारियों की संख्यान करीब 1000 के करीब है जिन्हो्ने मेडिकल बिल के नाम पर इस भारी भरकम राशि का आहरण किया है । जानकार सूत्र बताते है कि तत्कारलीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों के लिए बीमा योजना का अनुमोदन किया था इसके बाबजूद भी वह लागू नहीं हो पाई है । हो भी कैसे जब इलाज के नाम मंत्रालय के कर्मचारी भारी भरकम राशि का आहरण कर अपना खजाना भर रहे है । आश्चर्य इस बात का है कि कर्मचारी संगठन बीमा योजना को लागू करने की मांग भी नहीं उठा पा रहे है । वजह शायद यह है कि गत तीन सालों मे ही उन्होंने इलाज के नाम पर सरकारी खजाने से 30 करोड़ आहरित कर लिये है । जानकार सूत्र बताते है कि इस घोटाले के संबंध में विधानसभा में पूछा गया था कि एक वित्तीहय वर्ष में 25000 रूपये से अधिक की राशि आहरित करने वाले कर्मचारियों की संख्या  कितनी है जिस पर बताया गया कि लगभग ऐसे 800 कर्मचारी है जिन्होंने 25 हजार रूपये से अधिक की राशि आहरित की है । 

जांच के नाम पर खानापूर्ति 

मामले से जुड़े जानकार सूत्र बताते है कि मेडिकल बिल के नाम पर मंत्रालय में हो रहे इस फर्जीवाड़े की जानकारी होने पर एक व्यक्ति ने तीन शिकायती पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपे थे जिसमें करीब 250 कर्मचारियों की नामजद शिकायत की गई थी, जो इस फर्जी मेडिकल बिल घोटाले में लिप्त है । लेकिन मुख्य लेखाधिकारी ने जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की ।  आश्यनर्च तो इस बात का है जब यह मामला विधानसभा में उठा तो घोटाला उजागर होने के डर से सामान्ये प्रशासन विभाग के अफसरों ने जानकारी एकत्रित करने का जवाब विधानसभा को भिजवा दिया । 

जल संसाधन विभाग में हुआ था ऐसा मामला 

प्रदेश के जल संसाधन विभाग में लगभग 10 वर्ष पूर्व इसी तरह का बड़ा मेडिकल बिलों का फर्जीवाड़ा सामने आया था । जिस पर तत्का्लीन प्रमुख अभियंता ने एफआईआर दर्ज कराई थी । क्राइम ब्रांच भोपाल के द्वारा मामले की विवेचना के बाद जिला न्यायालय भोपाल में 19 कर्मचारियों के विरूद्ध आरोप पत्र पेश किया था । जिसमें इन कर्मचारियों को न्याायालय के द्वारा 03 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद 10 कार्यरत कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्तस किया गया तथा 9 सेवानिवृत्त  कर्मचारियों की पेंशन कैबिनेट के अनुमोदन के बाद रोक दी गई है । 

जांच से क्यों कतरा रहा है जीएडी 

करोड़ो के इस फर्जी मेडिकल बिल मामले के उजागर होने के बाद सामान्य प्रशासन विभाग जांच से क्यों कतरा रहा है, यह एक बड़ा सवाल है । एक तरफ जल संसाधन विभाग में मामला उजागर होने के बाद कर्मचारियों को सजा दी गई थी तो वही दूसरी तरफ प्रदेश के सर्वोच्च कार्यालय मंत्रालय के कर्मचारियों का इस तरह का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद भी विभाग खामोश बना हुआ है । सवाल यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की बात करने वाले प्रदेश के मुखिया की नाक के नीचे कार्यरत कर्मचारियों ने इतने बड़े फर्जीवाड़े को अंजाम दे दिया और सरकार को कानोकान खबर नहीं लगी । हद तो तब हो गई जब मामले के उजागर होने के बाद भी कार्यवाही करने के बजाए जांच के नाम पर कागजी खानापूर्ति की जा रही है। 

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