गर्भावस्था में सामने आया ब्लड कैंसर, कीमोथैरेपी देकर बच्चे को बचाया



एम्स भोपाल में ब्लड कैंसर से जूझ रही एक गर्भवती महिला का सफल इलाज

भोपाल । एम्स भोपाल में ब्लड कैंसर से जूझ रही एक गर्भवती महिला का न केवल सफल इलाज किया गया, बल्कि सुरक्षित प्रसव भी कराया गया। गर्भस्थ शिशु को कीमोथैरेपी से बचाते हुए किए गए उपचार से शिशु भी पूरी तरह स्वस्थ्य है। सागर की रहने वाली 21 साल की सुनीता (परिवर्तित नाम) की गर्भावस्था के दौरान बार-बार तबीयत खराब हो रही थी। सागर में जांच के दौरान डाक्टर को ब्लड कैंसर की आशंका हुई। डाक्टर ने यह बात मरीज और उसके परिवार से छुपाते हुए उन्हें एम्स भोपाल जाने की सलाह दी। सुनीता जब एम्स भोपाल पहुंचीं तो उसे 29 सप्ताह का गर्भ था। एम्स के हैमेटोलाजिस्ट डा. सचिन बंसल ने बताया कि जांच के दौरान हमने सुनीता को ब्लड कैंसर की जानकारी नहीं दी। गर्भावस्था के दौरान महिला को तनाव देना बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है। उन्होंने बताया कि जांच में पुष्टि होने के बाद सुनीता की काउंसलिंग कर उसे ब्लड कैंसर के इलाज के लिए राजी किया गया। शिशु को बचाते हुए दी कीमोथैरेपी डा. बंसल ने बताया कि इलाज में सबसे बड़ी चुनौती कीमोथैरेपी के असर से गर्भस्थ शिशु को बचाना था। इसके लिए उन्होंने विशेष प्रकार की दवाओं का उपयोग किया। पूरी गर्भावस्था के दौरान मरीज का कैंसर का इलाज और बच्चे की जान बचाना अपने आप में एक चुनौती भरा काम था। इस पूरे इलाज में सुनीता को कुल चार बार कीमोथैरेपी दी गई। इनकी भी रही अहम भूमिका इस दौरान स्त्री प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. अजय हलधर, डा. पुष्पलता और शिशु रोग विशेषज्ञ डा. चेतन खरे ने मरीज को हर प्रकार से सहायता प्रदान की और उनकी टीम के सहयोग से बच्चे की नार्मल डिलीवरी कराई गई। बहुस्तरीय चिकित्सीय टीम की गई तैयार महिला की जांच के लिए बहुस्तरीय चिकित्सीय टीम तैयार की। इस टीम में मेडिकल आंकोलाजिस्ट, स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जिकल आंकोलाजिस्ट, भ्रूण चिकित्सा विशेषज्ञ और विकिरण आंकोलाजिस्ट को शामिल किया। डाक्टरों का कहना है कि यह मामला उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि एक तरफ महिला का कैंसर और दूसरी ओर गर्भावस्था थी। लगातार जारी रही मानिटरिंग डा. सचिन बंसल ने कहा कि यह मामला वास्तव में असाधारण था, जिसके लिए एक बहु-विषयक टीम की जरूरत होती है। हमारी प्राथमिकता मां और बच्चे दोनों को सुरक्षित रखना था। हम बार बार यही देख रहे थे कि कहीं दवाओं से गर्भ में शिशु को कोई नुकसान तो नहीं पहुंच रहा। समय आने पर करीब आठ माह में बच्चे को सुरक्षित इस दुनिया में लाया गया।

इनका कहना है :
ऐसे केस में एक छत के नीचे सभी विशेषज्ञ का होना जरूरी है। इस कारण ही महिला को ब्लड कैंसर होते हुए भी हम सुरक्षित प्रसव कराने में सफल रहे।
डा. सचिन बंसल 
- सहायक प्राध्यापक
हीमैटोलाजी विभाग - एम्स  भोपाल

Comments