एस्टेरॉयड या धूमकेतु हैं जिम्मेदार, चंद्रयान-3 के डेटा से मिलेगा जवाब
वॉशिंगटन। चंद्रमा पर एक स्पेस स्टेशन का निर्माण सुनने में किसी साइंस फिक्शन फिल्म के जैसा हो सकता है। लेकिन हर नया चंद्रमा मिशन इस विचार को वास्तविकता के करीब ले जाता है। वैज्ञानिक स्थायी रूप से छाया वाले इलाकों में विशाल बर्फ के भंडार की खोज कर रहे हैं। चंद्रमा पर किसी भी तरह के टिकाऊ बुनियादी ढांचा की स्थापना के लिए ये महत्वपूर्ण हो सकता है। अगस्त 2023 में भारत का चंद्रयान दक्षिणी धु्रव क्षेत्र में उतरा। वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां बर्फ के भंडार हो सकते हैं। यह लैंडिंग सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। कोलोराडो बोल्डर यूनिवर्सिटी में खगोलभौतिकी और ग्रह विज्ञान के सहायक प्रोफेसर पॉल हेने ने कहा, मेरे जैसे ग्रह वैज्ञानिकों के लिए विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के यंत्रों से मिली जानकारी चंद्रमा के उस हिस्से की झलक देते हैं, जिसमें बर्फ होने की सबसे ज्यादा संभावना है। पहले के अवलोकनों से पता चला है कि कुछ स्थायी छाया वाले क्षेत्रों में बर्फ मौजूद है। हालांकि इस बर्फ के जमावों की मात्रा और इनका रूप वितरण के संबंध में अनुमान से एकदम अलग है।
कहां से आया चांद पर पानी
प्रोफेसर पॉल की टीम वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला में यह समझने की कोशिश कर रही है, कि आखिर पानी कहां से आया। माना जाता है कि ये पानी धूमकेतु या एस्टेरॉयड से आया जो चांद से टकराए होंगे। इनमें से हर घटना अपने पीछे एक विशिष्ट रासायनिक फिंगरप्रिंट छोड़ती है। इसलिए अगर हम उन फिंगरप्रिंट को देख सकें तो पानी के स्रोत का पता चल सकता है। उदाहरण के लिए अगर चंद्रमा पर बर्फ ज्वालामुखीय गतिविधियों से बनी तो बर्फ में जमा सल्फर अधिक मात्रा में होने की उम्मीद है।
चंद्रमा पर खोजा सल्फर
पानी की तरह चंद्रमा पर सल्फर एक अस्थिर तत्व है। क्योंकि चंद्रमा की सतह पर यह आसानी से वाष्पीकृत होकर अंतरिक्ष में खो जाता है। इस वजह से इसके चंद्रमा के सिर्फ ठंडे हिस्से में जमा होने की उम्मीद है। विक्रम लैंडर किसी छाया वाली जगह पर नहीं उतरा। इसने 69.37 डिग्री दक्षिण अक्षांश पर मिट्टी के दानों में सल्फर की पहचान की थी। वैज्ञानिक इस डेटा से उत्साहित है। उनका मानना है कि सल्फर चंद्रमा के पानी के स्रोत की ओर इशारा कर सकता है।
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