मानव विकास की खराब स्थिति पर वित्त आयोग ने जताई चिंता
भोपाल । मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा है कि अब वित्त आयोग को केन्द्र और राज्य के संबंधों से परे जाकर अंतर्राज्यीय समानता लाने की दिशा में भी सोचना होगा। उन्होंने आज यहां मंत्रालय में 15वें वित्त आयोग के समक्ष अपने विचार रखते हुए वित्त आयोग से को-ऑपरेटिव संघीय व्यवस्था को गतिशील बनाने नये तरीके से परिभाषित करने की अपेक्षा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रत्येक राज्य अपनी विशेषताएं होती हैं। किसी एक फार्मूला या व्यवस्था के आधार पर राज्यों की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिये राज्य के संसाधनों के संबंध में इसी दृष्टिकोण से विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य के संसाधन देश के भी संसाधन है । इसलिये इन संसाधनों को सहेजने और सम्हाल कर रखने के लिये राज्यों की भरपाई होना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश जनजातीय बहुल प्रदेश है और खनिज संपन्न राज्य है। यहां की वन संपदा अत्यंत समृद्ध अवस्था में है। इसकी तुलना अन्य राज्यों से नहीं हो सकती। वित्त आयोग को इसे ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि मध्य्रपदेश को अपनी वन संपदा को बढाने और बचाने पर जो धन खर्च होता है उसने न सिर्फ राजस्व की हानि होती है बल्कि राजस्व हासिल करने के अवसर भी समाप्त हो जाते हैं। आयोग को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इसकी भरपाई कैसे होगी। जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने में मध्यप्रदेश के वनों का महत्वपूर्ण योगदान है और जलवायु परिवर्तन का खतरा सिर्फ मध्यप्रदेश पर नहीं है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वनों के रखरखाव के कारण विकास गतिविधियां कम होती हैं । इन वनों में लगभग एक करोड वनवासी रहते हैं। विकास के अवसरों के अभाव में चरमपंथी विचार पनपने लगते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि आर्थिक गतिविधियों के अभाव मे शहरीकरण की प्रक्रिया भी आधी अधूरी रह जाती है। इसका गांवों और शहरों में एक साथ असर पड़ता है। आय मे असमानताएं बढ़ती है।
खनिज के लिए अलग नीति बने
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश खनिज सम्पन्न राज्य है लेकिन पिछले दो दशकों में सभी खनिजों के लिये सिर्फ एक ही नीति रही है जबकि खनिज विशेष के लिये अलग से नीति होना चाहिए। करों के बंटवारे के संबंध में अपने विचार रखते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कर राजस्व के बंटवाने की पद्धति पर फिर से विचार करने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं होता है तो राज्यों के बीच असमानताएं बढेंगी। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों के संसाधनों पर लगाये उपकर और सरचार्ज में भी राज्य की बराबर की भागीदारी होना चाहिए।
कृषि क्षेत्र के संबंध में वित्त आयोग से राज्य की अपेक्षाएं साझा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अब एक और कृषि क्रांति की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ज्यादा उत्पादन और उत्पादकता के बावजूद अच्छे दाम नहीं मिलने के कारण किसानों की स्थिति में अपेक्षानुरूप सुधार नहीं हो पाता । न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में जितनी सहायता उनकी होती है उससे दो गुनी तेजी से खेती की की लागत बढ़ जाती है। इसके कारण किसान हमेशा कर्ज के जाल में ही फंसा रहता है और उम्मीद के अनुसार परिणाम सरकार के प्रयासों के परिणाम नहीं मिल पाते।
कृषि विकास दर बढ़ी, नहीं दिख रहा असर
वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने मुख्यमंत्री के विचारों से सहमत होते हुए कहा कि 14वें वित्त आयोग ने वन संरक्षण, राजस्व और क्षतिपर्ति से संबंध विषयों पर ध्यान दिया था। उन्होंने इस बात पर भी सहमति जताई कि प्रत्येक खनिज के लिये अलग से नीति होना चाहिए। उन्होंने राज्य के मानव विकास में पिछड़ने विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के मानव विकास सूचकांकों में पीछे रहने पर पर चिंता जाहिर की। सिंह ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि मध्यप्रदेश की कृषि वृद्धि दर ज्यादा रिपोर्ट होने के बावजूद गरीबी उन्मूलन पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है।
इस मौके पर केंद्रीय वित्त आयोग के सदस्य अजय नारायण झा, रमेश चंद्र, अशोक लहरी, अनूप सिंह एवं आयोग के सदस्य सचिव अरविंद मेहता व राज्य के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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