जया तागड़े की कविता -चंचल
चंचल
मुस्कान सी मधुरता
सजाए अपने अधरों पर
उम्मीद की किरण
बनाए अपने चित्त पर
प्रेम सी नज़र
जगाए अपने मन में
मितवा को देख ख्वाबो में
प्रेयसी बने चंचल
मिलन की लगाए आस
मीठी सी चुभन
हिना ने जमाया रंग
महका दे घर आंगन
बगिया बने चितवन
सुंदर जैसे नयन
मितवा को देख ख्वाबो में
प्रेयसी बने चंचल
मदहोशी सा आलम
समझ न पाए बन्धन
स्वप्न सजाए मन
अजब लगे दीवानापन
बाजे ढोल मृदंग
प्रेम की लिए आस
मितवा को देख ख्वाबो में
प्रेयसी बने चंचल
श्रीमती जया तागड़े
साकेत नगर, भोपाल
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