कंट्रोवर्सी दर्शकों को सिनेमा थियेटर तक नहीं लाती है : सिंह


जजमेंटल है क्या और जबरिया जोड़ी के प्रोडयूसर शैलेश आर सिंह से  खास बातचीत


मुम्बई। जजमेंटल है क्या और जबरिया जोड़ी के प्रोडयूसर शैलेश आर सिंह नहीं मानते कि कंट्रोवर्सी दर्शकों को सिनेमा थियेटर तक लाती है । एक दशक से भी अधिक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काम कर चुके प्रतिष्ठित प्रोडयूसर शैलेश आर सिंह ने अपनी विषयपरक और कंटेंट प्रधान फिल्मों की वजह एक अलग पहचान स्थापित की है। स्वतंत्र निर्माता के रूप में उन्होंने अब तक कई फिल्मों का निर्माण किया है। अब शैलेश की दो फिल्में एक के बाद एक रिलीज होने जा रही है। जजमेंटल है क्या और जबरिया जोड़ी। दोनों ही फिल्मों की खूब चर्चाएं हो रही हैं और दर्शकों को दोनों ही फिल्मों का बेसब्री से इंतजार है। यही नहीं शैलेश ने अपनी अगली फिल्म हुड़दंग की शूटिंग भी शुरू कर दी है। अपने फिल्मी सफर के बारे में बात करते हुए शैलेश आर सिंह कहते हैं कि मैंने अब तक 16 फिल्मों का निर्माण किया है, जिनमें से 10 फिल्में नये निर्देशकों द्वारा बनायी गयी हैं। एक इंडिपेंडेंट प्रोडयूसर के रूप में, मुझे जो बात आकर्षित करती है और प्रभावित करती है, वह सिर्फ और सिर्फ कहानी होती है और कुछ नहीं। 


दर्शकों को अच्छा कंटेंट चाहिए


मेरा मानना है कि कंटेंट में बात होनी चाहिए, फिर चाहे वह कमर्शियल फिल्म हो या फिर इंडिपेंडेंट फिल्म हो। कैरेक्टर्स का सही होना जरूरी है। कंटेंट ही किंग है, इस बात पर जोर देते हुए शैलेश आगे कहते हैं कि आज हर दर्शक को अच्छा कंटेंट चाहिए। उन्हें औसत विषय नहीं चाहिए। पहले एक जमाना था, जब फिल्मों में सुपरस्टार नहीं  होते थे, तो लोग फिल्में देखने ही नहीं जाते थे, लेकिन अब चीजें बदल गयी हैं। जमाना बदला है। अब लोग थियेटर में केवल अच्छी फिल्में देखने जाते हैं। हां, यह बात भी सही है कि स्टार्स की वजह से सबसे बड़ा मुनाफा यह होता है कि स्टार्स की वजह से फिल्मों की ओपनिंग मिलती है। लेकिन स्टार्स भी बुरी फिल्म को बचा पाने में समर्थ नहीं होते हैं।


विवादों के कारण फ़िल्म नहीं चलती


टैलेंटेड प्रोडयूसर ने इस पर भी प्रकाश डालते हुए अपनी बात रखी कि अब विवादों की वजह से लोग थियेटर नहीं आते हैं। हाल ही में अपन फिल्म जजमेंटल है क्या को लेकर हुए विवादों के बारे में शैलेश ने कहा कि  मैं इस बात पर जरा भी यकीन नहीं करता हूं कि कोई भी पब्लिसिटी, अच्छी पब्लिसिटी होती है, यह मुहावरा आज के दौर पर फिट  बैठता है। मैं बिल्कुल नहीं मानता हूं कि विवादों की वजह से लोग थियेटर आते हैं या आयेंगे।


 


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