वर्षा रावल की कविता - आजादी का रक्षाबंधन


आज़ादी का रक्षाबंधन....


आओ भैया कि
इस रक्षाबंधन 
मुझे आज़ाद करवा दो.....


जनमों के मकड़जाल से
सदियों से निकलने की
कोशिश में
उलझती जा रही हूं
उलझन सुलझा दो ...


आओ भैया कि
इस रक्षाबंधन मुझे
आज़ाद करवा दो.....


निष्कासित सीता को
निकाल लो
धरती का सीना चीरकर,
अहिल्या को श्राप मुक्ति दे दो
पत्थर के स्पंदित के होने तक....


आओ भैया कि
इस रक्षाबंधन मुझे
आज़ाद करवा दो.…....


कि छिटकी हुई यशोधरा 
बोती रही है बच्चे में इंसानियत
दे दो कलाई अपनी
बांध दूं सारी दुआएं .....
सर पर हाथ रख दो
साईं बनकर........


आओ भैया कि
इस रक्षाबंधन हमें
आज़ाद करवा दो .......


हर बहन को,
उसके अंदर की स्त्री को
सदियों से लगी हुई
गुलामी की बेड़ियों से.....



वर्षा@


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