105 करोड़ के फायदे को 21 करोड़ के गर्त में पहुँचाया


अपेक्स बैंक को दीमक की तरह चट कर रहीं सहकारिता के भ्रष्ट अफसरों की कुदृष्टि


संदीप सिंह गहरवार


भोपाल। बिन सहकार नहीं उद्धार की मूल भावना पर तैयार की गई सहकारिता की नींव किसानों के लिए फायदे की जगह परेशानी का सबब बन गई है। अफसरों की जुगलबंदी और भ्रष्टाचार युक्त आचरण ने इसके पवित्रता पर कालिख पोत दी है। विगत डेढ़ दशकों में जिस सहकारिता को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुभाष यादव ने अपने खून-पसीने से सींच कर कामयाबी की बुलंदियों तक पहुँचाया था, उसे इन निक्कम्मे और भ्रष्ट अधिकारियों ने गर्त की ओर ढकेल दिया है। सहकारिता की ऐसी दुर्गति देखकर तो स्व. यादव की आत्मा भी सिहर उठती होगी, कि क्या ऐसे दिन के लिए सहकारिता को किसानों की उन्नति का ढाल बनाया था।  विडंबना यह है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री स्व. यादव की भावनाओं की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने तो सिरे से नकारते हुए भ्रष्टाचार का ऐसा कुचक्र चला कि सहकारिता की मूल भावना ही गम हो गई। पर वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इसमें सुधार करने के बजाय उन्हीं भ्रष्ट अधिकारियों को ही आगे बढ़ा रही है जिन्होंने इसका बेड़ा गर्ग करने में महती भूमिका निभाई है। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार भी इस पर कुछ कठोर दण्डात्मक निर्णय लेने की जगह हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सहकारिता विभाग के भ्रष्टाचार की बानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपेक्स बैंक के कुछ महीनों तक ही प्रभारी अधिकारी रहे अधिकारी रहे हो या बैंक के प्रभारी प्रबन्ध संचालक का जिम्मा सभाल रहे सहकारिता विभाग के भ्रष्ट अफसर। सब ने अपेक्स बैंक में भ्रष्टाचार की ऐसी कालिख पोती है कि 105 करोड़ के फायदे वाला बैंक महज 21 करोड़ 24 लाख के फायदे में पहुंच गया। यानी अपेक्स बैंक का मुनाफा पांच गुना घट गया है। बैंक के इस लाभांश को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रभारी प्रबन्ध संचालक प्रदीप नीखरा सहित अपेक्स बैंक और सहकारिता विभाग के अन्य अफसरों की कुदृष्टि किस कदर बैंक को दीमक की तरह चट कर रही है। 


अफसरों की मनमानी से 4 करोड़ आयकर में फंसे




अफसरों की मनमानी एवं भ्रष्टाचार के चलते अपेक्स बैंक का 4 करोड़ रूपया आयकर विभाग में फंसा हुआ है। इस पैसे के लौटने की संभावनाएं फिलहाल देर से हैं। दरअसल अपेक्स बैंक के अफसरों ने मार्च 19 में आयकर में जमा करने वाले एडवांस टैक्स में बैंक की आमदनी 12 करोड ज्यादा बता दी। बैंक अफसरों की इस लापरवाही के चलते आय का 31 फीसदी टैक्स यानी 4 करोड़ रुपया आयकर विभाग में ज्यादा चला गया। हलाकि बैंक बाद में इस पैसे के वापस आने की उम्मीद पर बैठा है, पर यह कब आएगा इसकी कोई मियाद अभी समझ मे नहीं आ रही है। इस मामले में अपेक्स बैंक के सहायक महाप्रबंधक (लेखा) उमेश रंगडाले और प्रभारी प्रबन्ध संचालक प्रदीप नीखरा की बड़ी लापरवाही सामने आई है। इन दोनों ही अफसरों पर इस महत्वपूर्ण कार्य की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी है। जानकारी के अनुसार हाल ही में एजीएम ग्वालियर द्वारा अपेक्स बैंक की जो बैलेंस सीट फाइनल की है, उसके अनुसार अभी तक बैंक का शुद्ध लाभ 21 करोड़ 24 लाख बताया है। 


नीखरा और केसरी की ऐसी जुगलबंदी की दोनों दूसरी बार जमे

अपेक्स बैंक के प्रभारी प्रबन्ध संचालक प्रदीप नीखरा एवं सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव अजीत केसरी की आपस में कितनी जुगलबंदी हैं कि दोनों अफसर एक बार फिर एक साथ सहकारिता के उद्देश्य की दुर्गति में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। नीखरा की करामात पर पर्दा डालने में प्रमुख सचिव सहकारिता अजीत केसरी का बड़ा हाथ है। नीखरा इसके पहले 31 अक्टूबर 2014 से अक्टूबर 2017 तक अपेक्स बैंक के प्रभारी प्रबन्ध संचालक रहे। भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते उन्हें इस पद से हटाया गया था। सरकार बदलते ही फरवरी 2019 से दूसरी बार नीखरा अपेक्स बैंक के प्रभारी प्रबन्ध संचालक का पद हथियाने में कामयाब रहे। बैंक के इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई प्रबन्ध संचालक दूसरी बार बना हो। वहीं अजीत केसरी भी दूसरी बार सहकारिता के प्रमुख सचिव बने हैं।

प्रशासक की छवि को लग रहा बट्टा : 

अपेक्स बैंक अफसरों की काली करतूतों के कारण बैंक के प्रशासक अशोक सिंह की छवि भी धूमिल हो रही है। अपनी साफ सुथरी छवि के लिए पहचाने जाने वाले ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के कद्दावर कांग्रेस नेता अशोक सिंह को कुछ महीने पहले ही अपेक्स बैंक का प्रशासक सरकार द्वारा बनाया गया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस भरोसे के साथ श्री सिंह को सहकारिता की बिगड़ी छवि को पयरी पर लाने की जिम्मेदारी सौंपी है, वह इन अफसरों की काली कमाई के फेर में उलझती नजर आ रही है। 

इनका कहना है :-

-मुझे मामले की जानकारी नहीं है, पर इस तरह की चूक गम्भीर बात है। मैं इसे दिखवाता हूं, और प्रयास करूंगा कि ऐसी भूल आगे न हो। 

अशोक सिंह
प्रशासक, अपेक्स बैंक


 


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