कोरोना के संक्रमणकाल में ऑनलाइन क्लासेस और स्कूलों की होड़


ओमिता पार्थोदास
एक तरफ स्कूल बंद होने पर भी पढ़ाई हो रही है तो दूसरी तरफ बच्चों को चार से पांच घंटे मोबाइल लेकर बैठना पड़ता है। वैसे तो कहा जाता है कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखें लेकिन अभी बच्चे को पढ़ाई के लिए ही मोबाइल इस्तेमाल करना पड़ रहा है। उसके बाद वो टीवी भी देखता है तो उसका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। इसका बच्चे की सेहत पर क्या असर होगा। आजकल माता-पिता कुछ ऐसी ही दुविधा से दो-चार हो रहे हैं। बच्चे को पढ़ाना भी जरूरी है लेकिन उसकी सेहत भी अपनी जगह अहम है। साथ ही बच्चा कितना समझ पा रहा है ये भी देखना जरूरी है।
दरअसल, कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते मार्च से ही स्कूल बंद कर दिए गए हैं। इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि स्कूल कब से खुलेंगे और नया सिलेबस कब शुरू हो पाएगा। फिर एक बात ये है कि अभी कोई नहीं जानता कि स्कूल कब खुलने वाले हैं। अगर इसमें बहुत देरी होती है तो आगे चलकर बच्चों पर ही स्लेबस पूरा करने का दबाव आएगा। ऐसे में उनकी मुश्किल बढ़ जाएगी। इससे अच्छा है कि थोड़ा-थोड़ा करके अभी से ही आगे बढ़ें। बच्चे के ऊपर इतना दबाव डालने की जरूरत नहीं है। वैसे भी जब स्कूल बंद हुए थे तो पिछला सेशन लगभग पूरा हो चुका था और परीक्षाएं चल रही थीं। अब नया सेशन शुरू किया जाना है तो स्कूल खुलने पर पढ़ाया जा सकता है। 
ऑनलाइन क्लासेस के इस मौजूदा ढांचे पर ठीक से विचार नहीं किया गया है। जैसे कि इस दौरान जो स्लेबस कवर हो गया है वो आगे नहीं दोहराया जाएगा। अब उन बच्चों का सोचिए जो इस दौरान क्लासेस नहीं ले पाए। निजी स्कूलों में ही एक बड़ी संख्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग(ईडब्ल्यूएस) के बच्चों की है, जो फीस भी नहीं दे पाते वो महंगा मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट कहां से लाएंगे। एक तरह से आप उन बच्चों से शिक्षा का हक छीन रहे हैं।
लग रहा है कि ऑनलाइन क्लासेस की सार्थकता और पहुंच का विश्लेषण किए बिना ही इन्हें शुरू कर दिया गया है। जैसे माता-पिता को दिखाने और अपने स्कूल का नंबर बढ़ाने की कोई दौड़ हो? बच्चों को छोटी-छोटी फिजिकल एक्टिविटी के लिए प्रोत्साहित करें। एक ही जगह पर बैठे-बैठे उनकी सक्रियता कम हो सकती है। साथ ही साथ उत्तम भोजन की जानकारी देते रहे ताकि शरीर और आंखों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।
 (लेखिका शिक्षक एवं समाजसेवी हैं)


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