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चौकट : पर्वतीय जीवन और संस्कृति में सौहार्द का प्रतीक एक पारम्परिक आवास

 


भोपाल। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा अपनी ऑनलाइन प्रदर्शनी श्रृंखला के  तीसवां सोपान के तहत आज हिमालय ग्राम मुक्ताकाश  प्रदर्शनी  में सुदूर हिमालयी राज्यों से संकलित कर पुर्नस्थापित किये गये आवास प्रकारों के बेजोड़ नमूने एक चौकट के अवलोकन को समर्पित है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में आकारीय भिन्नता के अनुसार आवास प्रकारों की एक परम्परा रही हैए  इससे सम्बंधित विस्तृत  जानकारी तथा छायाचित्रों एवं वीडियों को ऑनलाईन प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में संग्रहालय के निदेशक डॉण् प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि पहले पहल यानी शुरूआत में एक मंजिला मकान होते थे जिन्हैं श्पण्डलूश् कहा जाता था। कालान्तर में संभवतः परिवार के विस्तार के साथ दो या तीन मंजिला मकान बनने लगे जिन्हें ष्हवेलीष् कहा जाता हैए फिर ष्चौकटष् और ष्पचपूराष् कहलाने वाले क्रमशः चार और पांच मंजिले मकान भी बनने लगे। अब तो आठ मंजिले मकान भी देखे जा सकते हैं। ष्चौकटष् का प्रचलन उत्तराखण्ड में यमुना घाटी और उसकी सहायक नदी टौंस के सीमान्त क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रहा है। चौकट की सामान्य लम्बाई तेरह हाथ ;यह एक प्रचीन भारतीय माप पद्धति है जिसमें 1 हाथ बराबर 1ण्5 फीट होता हैद्ध और चौड़ाई नौ हाथ होती थी एवं ऊँचाईए मंजिलें जिसे स्थानीय भाषा में पुर कहते थेए के अनुसार होती थी। आवासीय संरचनाओं की नामावली में विविधता भी इस क्षेत्र के वास्तु वैभव की विशे षता है। जैसे चौकट के अतिरिक्त अन्य मकान श्कुड़ूश् कहलाते हैए जिन मकानों में कोई ऊपरी मंजिल नहीं होती उनका उपयोग पशुओं को बांधने के लिये तो होता ही है साथ ही उन्हें गांव के बाहर बनाते हैं । 

इस सम्बन्ध में सहायक क्यूबरेटर डॉ राकेश मोहन नयाल ने बताया कि चौकट की मुख्य विशेषता इसके निर्माण में सामुदायिक सहभागिता है। देवी.देवताओं के चौकट तथा क्षेत्रवासियों की सामूहिक चौकट कभी भी एकाकी रूप से निर्मित नहीं होते बल्कि उसके लिये जंगल से लकड़ी लाने और निर्माण की विभिन्न प्रक्रियाओं को आपसी सहयोग से पूर्ण किया जाता है। चौकट की भव्यता और सुंदरता ही आपसी सौहार्द और भाई चारे का प्रतीक है।

सामान्यतः चौकट में देवदार वृक्ष की लकड़ी और हरी झाई युक्त पत्थर प्रयुक्त होता है जिसकी चुनाई मिट्टी से की जाती है। किन्तु देवताओं की चौकट की चुनाई उड़द दाल को पीसकर बनाई गई लेई से की जाती है और इसमें रिश्तेदार और ग्राम विशेष जहां चौकट बननी हैए के लोग ही सहभागी होते हैं। प्रत्येक घर से निश्चित  मात्रा में प्रतिदिन पिसी हुई उड़द एकत्रित की जाती है। वृक्षों की कटाई से हो रहे पर्यावरण क्षरण को देखते हुऐ चौकट का निर्माण अब असंभव हो गया है। इस अर्थ में अब  यह एक अमूल्य धरोहर बन गयी है। कोल.किरात जाति से प्रारम्भ हुई चौकट  निर्माण की कला आज विलुप्ति की कगार पर है। संग्रहालय द्वारा वर्ष 2006 में ग्राम फर्रीए तहसील बड़कोट जिला उत्तरकाशीए उत्तराखण्ड से संकलित यह आवास प्रादर्श पर्वतीय वास्तुकौशल की कहानी कहता है।

दर्शक इसका अवलोकन मानव संग्रहालय की अधिकृत साईट (https://igrms.com/wordpress/?page_id=2004)  एवं फेसबुक  (https://www.facebook.com/NationalMuseumMankind) के अतिरिक्त यूट्यूब लिंक  (https://youtu.be/5BoqvxCZzjE) पर ऑनलाइन के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं।




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