डॉ सुषमा भारती की कविता "बेटियां"
।। बेटियाँ ।।
बेटियों से सम्मान पिता का
बेटियों से लाखों अरमान है
फिर भी बेटियाँ बेटा नहीं है
ये कैसा अभिमान है।
बेटों के बराबर नहीं बेटियाँ
इसका हमें बड़ा अफसोस है
समाज की ये कैसी गंदी सोंच है।
पुरुषों की स्वर्णिम प्रेरणा
सृष्टि की शृंगार है।
नव रूप की नव देवियाँ
भिन्न भिन्न में प्रख्यात हैं
कब बदलेगी ये बिडम्बना
किसकेअंदर की ये चोंच है
समाजकी कैसी गंदी सोंच है। ।
बेटियों से भाई की राखी
बेटियों से है घर अंगनाई
बेटियाँ तो है जान माँ की
उनसे ही ममता की अनुराई
बेटियों से है शान हमारी
बेटियों से पिता का मोक्ष है।
फिर क्यों समाज की दोस्तों
आज भी गंदी सोंच है। ।
कभी अनुसूइया कभी सावित्री
तो कभी सिया अवतार है
कभी राधा कभी रुक्मणी तो
कभी मीरा की भक्ति अनुराग है।
गंगा यमुना और सरस्वती
तो कभी वैष्णो की अवतार है।
अनेकों रूप मे नारी है फिर भी
आज नारी मन कुछ उदास है।
जिनके बिना न सार्थक होती
बेटियों के बिना संसार अमोक्ष है।
ये कैसी समाज की गंदी सोंच है। ।
।।नारी शक्ति। ।
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