जीत का सेहरा ही सिर बांधेंगे हम
है कठिन यह दौर मुश्किल भी बड़ी है,
और मनुज के इम्तिहां की भी घड़ी है।
पर नहीं हारे हैं ना हारेंगे हम,
जीत का सेहरा ही सिर बांधेंगे हम।
तन से दूरी मन की भी दूरी नहीं है,
ज़िन्दगी की यूँ भले क़ातिल अदा है।
यदि उठी आवाज़ पूरब से कहीं तो,
हर दिशा ने उस दिशा में दी सदा है।
मौत से यह द्वंद है इंसानियत का,
फंद यम का है यकीं काटेंगे हम...
जीत का सेहरा ही सिर बांधेंगे हम.....
मानसिक सम्बल बढ़ाया हौसलों ने,
चीर कर सीना बढ़ेंगे हर बला का।
पूर्वजों ने सौंप दी है जो विरासत,
काट देगी पाश वो हर अर्गला का।
ज्ञान का विज्ञान का ध्वज ले चले हैं,
उच्चतम शिखरों पे ही गाड़ेंगे हम....
जीत का सेहरा ही सिर बांधेंगे हम.......
प्रण करें समवेत स्वर में प्राण प्रण से,
जीवनी अधिकार सबका हो सुरक्षित।
सांस थमने पाए कोई अब न बेबस,
सर्व जन के वास्ते हों सब समर्पित।
रोकना है इस प्रलय की तेज़ गति को,
रोक लेंगे दिल से जो चाहेंगे हम.....
जीत का सेहरा ही सिर बांधेंगे हम....
लेखिका- दीपशिखा सागर
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